भारत के रहस्यमयी मंदिर!
भारत देवी-देवताओं की जन्म भूमी है। यहां पर हर देवी-देवता का वास है। जिसके कारण लोगों की आस्था धर्म से जुडी हुई है। इस आस्था को देखते हुए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।
भारत में प्राचीन काल से ही धर्म और आस्था के रुप में मंदिर विशेष मह्त्व रखते हैं। यहां कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जो चमत्कार की द्रषिट से रहस्यमयी वताए जाते हैं। जिनका राज आजतक कोई नहीं जान पाया। माना जाता है कि इन मंदिरो में जाने से लोगों की पुरानी से पुरानी विमारी तो ठीक होती ही है, साथ ही उन्हे देवीय शकित और चमत्कार का भी अनुभव होता है। लोग तो इसे देविय शकित और चमत्कार मानते हैं। लेकिन विज्ञान इस वात को मानने के लिए राजी नहीं है, उनकी नजर में ये सव पांखड है और आंखो का धोखा है। लेकिन जब उन्होने इन रहस्य को खोजने की कोशीश की तो उन्हे केवल निराशा ही हाथ लगी। अव तो विज्ञान ने भी मानना शुरू कर दिया है कि भारत के इन मंदिरों में कोई न कोई देवीय शकित है, जिन पर लोगों की अटूट आस्था है। इस आस्था को देखते हुए ही लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। आइए जानते हैं वे कौन से मंदिर हैं जो चमत्कारिक द्रषिट से आज भी रहस्य वने हुए हैं।
करणी माता मंदिर
यह मंदिर राजस्थान में बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर या मूषक मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में करणी माता का वास है। इनकी क्रपा से ही यहां पर चुहों का वास है। यहां पे आपको काले चुहे भारी संख्या में देखने को मिलेंगे, जो केवल मंदिर में ही मौजुद रहते हैं, और लोगों को किसी तरह का नुक्सान नहीं पहुंचाते।
माना जाता है कि इस मंदिर मे अगर किसी को सफेद चुहा दिख जाए तो उसकी मनोकामना अवशय पूरी होती है।
इस आस्था और भगवान पर अटूट विशवास होने के कारण लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। यहां पर हर समय भारी संख्या में लोगों की भीड रहती है।
2.ज्वालामुखी मंदिर
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा मे कालीधार पहाडी के मध्य स्थित है।
यह मंदिर भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ मे से एक है। जिसके बारे में वताया जाता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। माता सती की जीभ के प्रतीक के रुप इस स्थान पर ज्वालाओं के रुप निकलते हैं, ये ज्वालाएं नौ रंग की हैं।
इस स्थान पर निकलने वाली ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौवां रुप माना गया है। ये (नो रुप हैं)देवियां है – अन्नपूर्णा, महाकाली, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, चंडी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी।
आजतक किसी को भी यह मालुम नहीं हुआ है कि ये ज्वालाएं कहां से निकलती हैं और इनका रंग कैसे वदलता रहता है। यहां के लोग इसे देविय शकित और चमत्कार ही मानते हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आता है और इन ज्वालाओं के दर्शन करता है, तो उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है।
पुरानी कहावत है – जब सम्राट अकवर इस मंदिर मे आए थे तो उन्होने सोने का छ्त्र इस मंदिर मे चढाया था। उनको ये घंमड हो गया था कि मेरे पास असीम पैसा है, धन-दौलत है। मैं जो भी चीज माता के मंदिर मे चढाउंगा तो माता खुश हो जाएगी। साथ ही मुग्लों ने इस मंदिर मे जल रही ज्वालाओं को भी भुजाने के हर संभव प्रयास किए थे, लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए।
ज्वाला माता राजा अकवर और मुगलों के इस घंमड को तोडना चाह्ती थी, तभी माता के इस श्राप के कारण ही अकवर द्वारा चढाया गया सोने का छ्त्र काला पड गया था।
तव से ही उन्हे माता की शकित का आभास हुआ और उनकी आस्था इस मंदिर के प्रति अटूट हो गई। जिसके कारण मुगलों ने भी इस मंदिर को चमत्कारी मंदिर वताया।
3.कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर असम राज्य में गुवाहटी के पास स्थित है और ये मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में भी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी सती की योनि गिरी थी, जो समय के साथ-साथ महान शक्ति-साधना का केंद्र बनी। लोगों की आस्था को देखते हुए ही लोग दूर-दूर से यहां आते हैं। लोगों का इस स्थान पे अटूट विशवास होने के कारण उनकी हर मनोकामना यहां ही पूरी होती है।
इसी लिए इस स्थान को कामना सिद्ध मंदिर या कामाख्या मंदिर भी कहा जाता है।
हैरानी की वात यह है इस प्राचीन मंदिर में माता की एक भी मूर्ती नहीं है। सुनने मे आता है कि यहां पे एक पत्थर से हर समय पानी निकलता रहता है और महीने में एक वार इस पत्थर से पानी की जगह खुन भी निकलता है। आज तक इस रह्स्य को कोई नही जान पाया कि ऐसा क्यों होता है।
4. काल भैरव मंदिर
यह मंदिर मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन में आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर भी एक रहस्य का केंद्र है। यहां पे लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए शराब चढाते हैं। हैरानी की वात यह है कि जब शराब की वोतल को काल भैरव की प्रतिमा के मुख से जैसे ही लगाई जाती है,
तो वह शराव की वोतल पल भर में ही खाली हो जाती है। लोग तो इसे भैरव जी का चमत्कार ही मानते हैं। यह मंदिर भी प्राचीन समय से रह्स्यमयी वना हुआ है और कोई भी ये नही जान पाया कि ऐसा क्यों होता है
5. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
ये मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है और इसकी गिनती भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में होती है। माना जाता है कि हनुमानजी जागृत अवस्था में इस मंदिर मे विराजमान रहते हैं।
जिन लोगों पर बुरी आत्माओं, बुरी शकितयों का प्रभाव ज्यादा होता है वे लोग मंदिर की चौखट पर पैर रखते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और देखते ही देखते उन लोगों पर इन बुरी चीजों का प्रभाव खत्म होने लगता है और ऐसे लोग धीरे-धीरे विल्कुल नोरमल हो जाते हैं। इस मंदिर मे भारी संख्या मे लोग दूर-दूर से इस इच्छा के साथ आते हैं कि उनकी विमारी ठीक हो जाए। हनुमान जी किसी को भी खाली हाथ नही भेजते। यहां पे जो भी आता है वो ठीक होकर ही वापिस जाता है।
लेकिन ऐसा क्यों होता है। आजतक इसे कोई नहीं जान पाया, लेकिन लोगों की राय के अनुसार ये सब हनुमान जी की ही क्रपा है, उनका ही चमत्कार है। लोग तो इसे अपनी श्रदा और अपनी आस्था मानते हैं। उनके अनुसार सच्चे मन से भगवान का सिमरण किया जाए तो भगवान उनकी कामना जरुर पूरी करते हैं। ये वात तो सच है, इसमे कोई दोहराई नही।
6.शनि शिंगणापुर मंदिर
शनि सिंगणापुर मंदिर महाराष्ट्र के अहदनगर जिले में स्थित है। वैसे भारत में शनि देव के कई मंदिर हैं, लेकिन ये मंदिर दुसरे मंदिरों से विल्कुल अलग है। इस मंदिर की खास वात ये है कि यहां पे शनि देव की प्रतिमा संगमरमर के चवुतरे पर सिथत है और इस पे कोई छ्त नहीं है।
इस स्थान पर रहने वाले लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते, अपने घरों को खुला छोडकर वाहर चले जाते हैं। आज तक कभी भी यहां पे रहने वाले लोगों के घरों मे चोरी नहीं हुई। क्योंकि भगवान शनि देव ही यहां पर रहने वाले लोगों के घरों की देखभाली करते हैं। अगर कोई चोर चोरी करता है तो शनि देव उसे दंड देते हैं। ऐसे प्रमाण स्पष्ट रुप से वहां पे रहने वाले लोग वताते हैं। लोग तो इसे भगवान की क्रपा मानते हैं। कहा जाता है कि जो वयकित शनि देव के प्रकोप से ग्रस्त है तो उसे इस मंदिर मे आकर ही मुकित मिलती है। जिस कारण दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
7. सोमनाथ मंदिर
इस मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। ये मंदिर गुजरात के वेरावल वंदरगाह पर सिथत है। इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव दवारा किया गया था। इस मंदिर को रहस्यमयी वताया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर को प्राचीन समय में 17 वार नष्ट किया जा चुका है, लेकिन हर वार इसका पुनर्निर्माण हुआ। आज तक इस रहस्य को कोई नहीं जान पाया।
इस स्थान पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्राण त्यागे थे। जब श्रीकृष्ण भालुका नामक स्थान पर विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनके पद्मचिह्न को हिरण की आंख समझकर धोखे से तीर मारा था, तभी से ही श्रीकृष्ण देह त्यागकर वैकुंठ चले गए थे। जिस कारण इस स्थान पर श्रीकृष्ण का मंदिर भी बना हुआ है।
8. सिद्धिविनायक मंदिर
कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। यह मंदिर भगवान गणेश जी को समर्पित है। ये मुंबई में स्थित है, जिसका निर्माण 19 नवंबर, 1801 को लक्ष्मण विट्ठु और देउबाई पाटिल दवारा किया गया था।
मान्यता है कि जब भगवान विष्णु सृष्टि की रचना कर रहे थे तो उन्हे नींद आ गई, तब भगवान विष्णु के कानों से दो दैत्य मधु व कैटभ प्रकट हुए। ये दोनों दैत्यों बाहर आते ही उत्पात मचाने लगे और देवताओं को परेशान करने लगे। इनका आंतक देख कर देवता श्रीविष्णु की शरण में आए। तब विष्णु जी की जैसे ही नींद खुली, और उहोने दैत्यों को मारने की कोशिश की लेकिन वो इस काम में सफल नही हुए। तब भगवान विष्णु ने श्री गणेश जी का आह्वान किया, जिससे गणेश जी प्रसन्न हुए और उनहोने दैत्यों का संहार किया। इस कार्य के उपरांत भगवान विष्णु ने पर्वत के शिखर पर मंदिर का निर्माण किया और साथ ही भगवान गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित किया। तभी से यह स्थल ‘सिद्धटेक’ नाम से भी जाना जाता है।
9. बद्रीनाथ मंदिर
बदरीनाथ मंदिर जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है, जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई थी। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना।
पुरानी कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
तभी से इस पवित्र स्थान पर जो भी मन्न्त मांगता है उसकी इच्छा जरुर पूरी होती है। जिसकारण यहां पे हर साल लोगों की भीड उमडी रहती है।
10. कन्याकुमारी देवी मंदिर
इस मंदिर की पूजा मां पार्वती के कन्या रुप मे की जाती है। यह देश का एकमात्र ऐसी जगह है जहां पर पुरूषों को कमर से ऊपर के कपडे उतारने होते हैं तभी वो मंदिर मे प्रवेश कर सकते हैं। कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है।
इसलिए इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। जहां पर हर समय सैलानाइयों की भीड रहती है।
प्राचीन कथा अनुसार जब शिवजी और कुमारी का विवाह अधुरा रह गया था तो वहां पे जो भी विवाह की तैयारियां की गईं थी वो सब रेत में बदल गईं और बचे हुए दाल-चावल भी बाद में कंकड़ बन गए थे।
“ये थे भारत के वो मंदिर जो रह्स्य के साथ व्यकित को ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि इस युग में भगवान का मिलना मुशकिल है, लेकिन जो सच्चे मन से उन्हे याद करता है तो उस व्यकित को केवल ये आभास होता है कि भगवान मैरे साथ हैं, पर वो दिखते नहीं। ऐसे में तो कुछ लोग इन घटनाओं को चमत्कार मानते हैं और कुछ के अनुसार तो ये केवल रहस्य हैं।”
Last Updated on April 3, 2018 by Abinash