कम्प्यूटर नेटवर्किंग | Computer Networking
नेटवर्क कम्प्यूटर और उपकरणों का ऐसा समूह है जो एक कम्युनिकेशन चैनल से जुडे रह्ते हैं। इसके जरिए यूजर डाटा, जानकारी, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को दूसरे यूजर्स के साथ शेयर कर सकता है।
निजी व संस्थानिक कम्प्यूटरों को कई वजहों से एक नेटवर्क में जोडा जाता है। इसमें डाटा, जानकारी, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को शेयर करने की और कम्युनिकेशन स्थापित करने की क्षमता होती है।
नेटवर्किंग की जरुरत | Requirement of networking
1। हार्डवेयर शेयर करने के लिए – एक नेटवर्क में शामिल प्रत्येक कम्प्यूटर हार्डवेयर को एक्सेस करके उसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए – एक नेटवर्क में कई सारे कम्प्यूटर शामिल हैं और हर कम्प्यूटर को लेजर प्रिंटर की जरुरत होती है। ऐसे में नेटवर्क से जुडे एक लेजर प्रिंटर का हर कम्प्यूटर इस्तेमाल कर सकता है।
2। डाटा और जानकारी को शेयर करने के लिए – कम्प्यूटर पर कार्य करते समय कोई भी वैध यूजर किसी भी दूसरे कम्प्यूटर में संग्रहित डाटा और सूचनाओं तक पहुंचकर उनका इस्तेमाल कर सकता है।
एक नेटवर्क में शामिल कोई भी वैध यूजर यहां तक कि हैंडहेल्ड कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने वाला मोबाइल यूजर भी इस डाटाबेस तक पहुंच सकता है और इसका इस्तेमाल कर सकता है। स्टोरेज डाटा और इंफोर्मेशन तक पहुंचकर उनका इस्तेमाल करने की सुविधा कई नेटवर्कों का बहुत ही मह्त्वपूर्ण फीचर होता है।
3। सॉफ्टवेयर शेयर करने के लिए – सॉफ्टवेयर शेयरिंग में बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर सर्वर की हार्ड डिस्क में स्टोर रह्ते हैं ताकि नेटवर्क में शामिल एक साथ कई यूजर इन तक पहुंचकर इनका इस्तेमाल कर सके।
जब आप किसी सॉफ्टवेयर पैकेज का नेटवर्क वर्जन खरीदते हैं, सॉफ्टवेयर वेंडर आपको एक लीगल एग्रीमेंट इश्यू करता है जिसे साइट लाइसेंस कह्ते हैं। यह कई यूजरों को एक साथ सॉफ्टवेयर पैकेज का इस्तेमाल करने की इजाजत देता है। प्रत्येक कम्प्यूटर के लिए अलग से सॉफ्टवेयर खरीदने की तुलना में नेटवर्क के जरिए उनकी शेयरिंग का खर्च लगभग न के बराबर आता है।
4। फैसिलिटेटेड कम्युनिकेशन – नेटवर्क का इस्तेमाल कर लोग प्रभावशाली और आसान ढंग से ई-मेल, इंस्टेंट मैसेज, चैट रुम्स, टेलीफोन और वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए कम्युनिकेट कर सकते हैं।
ई-मेल मैसेज आमतौर पर तुरंत डिलीवर होते हैं। कभी- कभी यह कम्युनिकेशन एक बिजनेस नेटवर्क में भी काम आता है। नेटवर्क सभी तरह के कम्प्यूटरों को आपस में जोडता है चाहे वो हैंडहेल्ड कम्प्यूटर हों या सुपर कम्प्यूटर।
नेटवर्क के प्रकार | Types of network
नेटवर्क के मुख्य तीन प्रकार हैं। – LAN, MAN और WAN। ये निजी, बिजनेस हाउस और संस्थाओं दवारा इस्तेमाल होते हैं। हर बिजनेस और संस्था की अपनी जरुरत होती है इसलिए हर नेटवर्क अपने आप में यूनिक होता है।
1। लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) – एक इमारत अथवा इमारतों के समूह में ऐसा कम्प्यूटर नेटवर्क जिसमें दो या अधिक कम्प्यूटर भौतिक रुप से एक-दूसरे से जुडे रह्ते हैं लोकल एरिया नेटवर्क कह्लाते हैं। जुडे हुए कम्प्यूटर वर्कस्टेशन कह्लाते हैं।
इसमें कम्प्यूटर एक-दूसरे से इसलिए जुडे रह्ते हैं ताकि मंह्गे उपकरणों जैसे लेजर प्रिंटर का संयुक्त रुप से इस्तेमाल कर सके, सर्वर में मौजुद डाटाबेस और एप्लीकेशन सभी वर्कस्टेशनों के लिए उपलब्ध हो सकें।
2। मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क (MAN) – यह एक हाईस्पीड नेटवर्क है, जो 200Mbps (मेगाबिट प्रति सेकेंड) तक में आवाज, डाटा और इमेज को तेजी से 75 कि।मी। की दूरी तक इमारतों के कुछ ब्लॉकों अथवा पूरे शहर में ले जा सकता है।
MAN जिसमें एक या अधिक लैन यहां तक कि टेलीकम्यूनिकेशन उपकरण जैसे माइक्रोवेव और सेटेलाइट रिले स्टेशन शामिल रह्ते हैं, वाइड एरिया नेटवर्क की तुलना में छोटा होता है लेकिन इसकी स्पीड आमतौर पर अधिक होती है।
3। वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) – ये एक कम्प्यूटर एक नेटवर्क है जो अपनी लंबी दूरी तक कम्प्यूनिकेशन करने की क्षमता के कारण लोकल एरिया नेटवर्क से काफी अलग होता है। इस नेटवर्क में पूरा देश और बडी बहुराष्ट्रीय कंपनी की सभी साइटें कवर हो सकती हैं।
वेन का इस्तेमाल लोकल एरिया नेटवर्क और अन्य नेटवर्कों को एक दूसरे से जोडने के लिए होता है। ताकि एक जगह पर बैठा कोई यूजर अपने कम्प्यूटर के जरिए दूर कहीं बैठे किसी दूसरे यूजर से कम्युनिकेट कर सके। कम्युनिकेशन आमतौर पर एक या अधिक राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय सरकारी इकाइयों दवारा उपलब्ध कराए जाते हैं।
क्लाइंट/ सर्वर नेटवर्क – एक नेटवर्क जिसमें एक या अधिक कम्प्यूटर सर्वर के रुप में डिजाइन किए गए हों और नेटवर्क के बाकी कम्प्यूटर क्लाइंट कह्लाते हैं
जो सर्वर से सेवाओं का निवेदन कर सकते हैं।
(A)। सर्वर – एक कम्प्यूटर जो खुद से जुडे हुए कम्प्यूटरों को सूचना उपल्ब्ध कराता है जैसे – वेब सर्वर, मेल सर्वर और लेन सर्वर। जब कोई यूजर सर्वर से कनेक्ट होता है तो एप्लीकेशंस, फाइल, प्रिंटर और अन्य सूचनाएं उसे उपलब्ध हो जाती हैं।
(B)। क्लांइट – क्लांइट एक कम्प्यूटर सिस्टम है जो किसी तरह के नेटवर्क के जरिए अन्य कम्प्यूटरों पर सर्विस एक्सेस करता है।
(C) साइज – क्लाइंट/सर्वर नेटवर्क आमतौर पर नेटवर्क के लिए ठीक रह्ते हैं और किसी भी साइज के नेटवर्क के साथ इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
(D) क्षमता – सर्वर के पास क्लांइट अथवा डेस्कटॉप कम्प्यूटरों की तुलना में ज्यादा मेमोरी होती है और ये ज्यादा तेज होते हैं।
ये जटिल टास्क को पूरा करने के लिए बेह्तर होते हैं। ताकि सर्वर प्रभावी ढंग से नेटवर्क की सभी फाइलों को स्टोर और मैनेज कर सके।
(F) सर्विसेज – सर्वर का आमतौर पर इस्तेमाल नेटवर्क में शामिल क्लाइंट कम्प्यूटरों को कोई खास सर्विस उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है।
जैसे प्रिंट सर्वर नेटवर्क के सभी क्लाइंट कम्प्यूटरों की प्रिंटिग को नियंत्रित करता है। डाटाबेस सर्वर बडी मात्रा में इंफोर्मेशन को स्टोर और व्यवसिथत करता है।
(G) सुरक्षा – ज्यादातर कंपनियां नेटवर्क सर्वर को बंद कमरे में रखती हैं।
केवल नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर ही इस कमरे में पहुंच सकता है।
(H) लागत – क्लाइंट/सर्वर नेटवर्क को कुछ खास और समर्पित सर्वरों की जरुरत होती है जो कि काफी मंह्गे हो सकते हैं।
अधिकांश कार्य सर्वर ही करता है, इसलिए क्लाइंट/सर्वर नेटवर्क में क्लाइंट कम्प्यूटर कम शकितशाली और सस्ते हो सकते हैं।
नेटवर्क के लिए आवश्यक उपकरण | Necessary Tools for Networks
नेटवर्क के लिए कई हार्डवेयर इस्तेमाल होते हैं।
1। सर्वर – ऐसा कम्प्यूटर जो अपने से जुडे हुए कम्प्युटरों को सूचनाएं उपलब्ध करता है सर्वर कह्लाता है। जैसे वेब सर्वर, मेल सर्वर और LAN सर्वर।
सर्वर हार्ड्वेयर रिर्सोसेज का मेजबान होता है। इन्हें वह क्लाइंट कम्प्यूटरों को नियंत्रण और शेयर करने के लिए उपलब्ध कराता है। जैसे प्रिंटर और फाइल सिस्टम। यह शेयरिंग एक्सेस कंट्रोल और सिक्योरिटी के लिहाज से काफी अच्छी होती है और हार्डवेयर के डुप्लीकेशन से बचाकर खर्च भी काफी कम कर देती है।
2। नेटवर्क प्रिंटर – प्रिंटर नेटवर्क से जुडे रह्ते हैं ताकि प्रिंटर की लागत कम हो सके। ज्यादातर नेटवर्क प्रिंटर नेटवर्क एडेप्टर का इस्तेमाल कर नेटवर्क से सीधे जुडे होते हैं|
नेटवर्क केबल का प्लग नेटवर्क एडेप्टर में लगा होता है जो कि प्रिंटर के पीछे होता है। ज्यादातर नेटवर्क प्रिंटर कई तरह के नेटवर्कों से जुडे हो सकते हैं।
3। प्रिंट सर्वर – प्रिंट सर्वर होस्ट कम्प्यूटर या उपकरण होता है जो एक या एक से अधिक कम्प्यूटरों से जुडा होता है।
यह अपने नेटवर्क में जुडे क्लाइंट कम्प्यूटरों से प्रिंट के लिए जॉब लेता है और इसके बाद यह उस डाटा को उसके मुताबिक प्रिंटर पर भेजकर उसका प्रिंट निकलवाता है।
4। नेटवर्क इंटरफेस कार्ड – एक नेटवर्क कार्ड, नेटवर्क एडेप्टर अथवा NIC (नेटवर्क इंटरफेस कंट्रोलर) कम्प्यूटर हार्डवेयर का एक पीस होता है जो एक कम्प्यूटर नेटवर्क में जुडे कम्प्यूटरों को एक-दूसरे से क्म्यूनिकेट करने की सुविधा देता है। जब कोई नेटवर्क इंटरफेस कार्ड बनता है तो उसे एक यूनिक हार्डवेयर एड्रेस दिया जाता है।
जब इंफोर्मेशन भेजी अथबा रिसीव की जाती है तो हार्डवेयर का एड्रेस नेटवर्क इंटरफेस कार्ड को पह्चानने में मददगार होता है। नेटवर्क इंटरफेस कार्ड ठीक से कार्य करे इसके लिए जरुरी है कि सही ड्राइवर इंस्टॉल किया जाए। यदि ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर ने नेटवर्क इंटरफेस कार्ड जोडने के बाद अपने आप ड्राइवर को इंस्टॉल नहीं करा तो आपको ड्राइवर को मैनुअली इंस्टॉल करना होगा।
5। वायरलेस नेटवर्क इंटरफेस कंट्रोलर (WNIC) एक नेटवर्क कार्ड है जो रेडियो बेस्ड कम्प्यूटर नेटवर्क से जुडा होता है, यह आम नेटवर्क इंटरफेस कार्ड NIC की तरह वायर बेस्ड नेटवर्क से जुडा नहीं होता है।
यह कार्ड माइक्रोवेव के माध्यम से कम्युनिकेट करने के लिए एक एंटीने का इस्तेमाल करता है।
6। ह्ब – ह्ब का इस्तेमाल बीच की जगह पर होता है जहां नेटवर्क की सभी केबल मिलती हैं। ह्ब में सॉकेट अथवा पोर्ट होते हैं जहां कम्प्यूटर उपकरणों से आने वाली केबल प्लग्ड होती हैं। ह्ब में आमतौर पर 4,8,16 अथवा 24 पोर्ट होते हैं। आमतौर पर हर पोर्ट की इंडीकेटर लाइट होती है। जब कम्प्यूटर पोर्ट से जुडा हो और ऑन हो तो लाइट जलती रह्ती है। ह्ब में कम्प्यूटरों अथवा ह्ब की चेन को जोडना, ह्टाना अथवा एक से दूसरे स्थान पर फिट करना बहुत आसान होता है। केबल किसी भी पोर्ट से आसानी से निकालकर दूसरे पोर्ट में लगाई जा सकती है। इस प्रकिया के बीच नेटवर्क को बंद करने की भी कोई जरुरत नहीं होती।
7। सिवच – नेटवर्क सिवच एक नेटवर्क डिवाइस है जो हार्डवेयर की स्पीड तक ट्रांसपेरेंट ब्रिजिंग बनाता है। आम हार्डवेयर में सिवच शामिल होते हैं जो प्रति सेकेंड 10, 100 अथवा 1000 मेगाबिट पर कनेक्ट हो सकते हैं।
सिवच यह तय करने में मदद करते हैं कि जो सुचनाएं नेटवर्क के जरिए शिफ्ट हो रही हैं वे सुरक्षित रहें। हब नेटवर्क के हर कम्प्यूटर को सुचनाएं ट्रांसफर कर देता है जबकि सिवच में ये सूचनाएं केवल वांछित रिसिवर को ही उपलब्ध होती हैं। कुछ सिवच ‘राउटिंग सिवच’ कह्लाते हैं। इनमें राउटर जैसी क्षमताएं होती हैं। राउटिंग सिवच नेटवर्क के किसी स्थान पर भेजी जाने वाली सूचनाओं को पह्चान कर उन्हें रास्ता दिखाते हैं।
8। रिपीटर – रिपीटर इलैक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जो मंद अथवा निम्न स्तर के सिग्नल को रिसीव कर उन्हें उच्च स्तर अथवा उच्च शकित का बनाकर भेजते हैं ताकि सिग्नल लंबी दूरी को बिना किसी बाधा के तय कर सके।
रिपीटर का इस्तेमाल नेटवर्क में कम्प्यूटर उपकरणों को एक-दूसरे से जोडने वाली केबल की लंबाई बढाने के लिए किया जाता है।
9। ब्रिज – ऐसा उपकरण है जो दो नेटवर्कों को एक बडे लॉजिकल नेटवर्क के रुप में जोड देता है ताकि उनके बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सके।
ब्रिज छोटे नेटवर्कों को आपस में जोडने के लिए काम आते हैं ताकि वे सभी नेटवर्क संयुक्त रुप से एक बडे नेटवर्क के रुप में कार्य कर सकें।
10। राउटर – राउटर वह कम्प्यूटर नेटवर्क उपकरण है जो नेटवर्क में कहीं से भी डाटा को कहीं भी भेज सकता है।
उसकी इस पूरी प्रकिया को राउंटिग कह्ते है।
राउटर के प्रकार | Types of Router
(A)। स्टेटिक राउटर – स्टेटिक राउटर उन्हे कहा जाता है
जो अपने आप नेटवर्क में उपलब्ध सभी रुटों की टेबल तैयार कर उसे मेंटेन करता रह्ता है।
(B)। वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) – राउटर लोकल एरिया नेटवर्क को वाइड एरिया नेटवर्क से जोडने में काफी मददगार होते हैं। इससे नेटवर्क में दौडने वाली सूचनाओं की मात्रा घटने में मदद मिलती है और WAN की दक्षता बनी रह्ती है।
11। इथरनेट – इथरनेट एक LAN टेक्नोलॉजी है जो कम्प्यूटर को नेटवर्क पर एक्सेस करने की सुविधा देती है।
इथरनेट सूचनाओं को नेटवर्क के जरिए 10 मेगाबिट प्रति सेकेंड की रफ्तार में ट्रांसफर कर सकता है। तेज इथरनेट सूचनाओं को नेटवर्क के जरिए 100 मेगाबिट प्रति सेकेंड तक की रफ्तार से ट्रांसफर कर सकता है। गिगाबिट इथरनेट सूचनाओं को नेटवर्क के जरिए 1000 मेगाबिट प्रति सेकेंड तक की रफ्तार से ट्रांसफर कर सकता है।
12। टोकन रिंग – टोकन रिंग LAN टेक्नोलॉजी का एक प्रकार है जो अक्सर बडे संस्थानों जैसे बैंक और बीमा कंपनी में पाया जाता है।
एक टोकन रिंग नेटवर्क सूचनाओं को नेटवर्क के जरिए चार अथवा 16 Mbps की स्पीड से भेज सकता है।
13। वेप – WAP अथवा वायरलेस एप्लीकेशन प्रोटोकॉल वायरलेस कम्युनिकेशन में इस्तेमाल होने वाली एप्लीकेशनों के लिए ओपन इंटरनेशनल स्टैंडर्ड है। इसकी मुख्य एप्लीकेशन मोबाइल फोन अथवा PDA से इंटरनेट एक्सेस करना है।
यह एक ऐसा प्रोटोकोल है जो दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मोबाइल इंटरनेट साइटों के लिए इस्तेमाल होता है। इन साइटों को WAP साइटस कह्ते हैं।
14। इंटरानेट – यह एक ऐसा प्राइवेट नेटवर्क है जो इंटरनेट प्रोटोकॉल जैसे TCP/IP पर आधारित होता है। इसमें जो सेवाएं शामिल होती हैं उनमें डॉक्यूमेंट डिस्ट्रीब्यूशन, सॉफ्टवेयर डिस्ट्रीब्यूशन और डाटाबेस तक एक्सेस शामिल हैं।
यह वलर्ड वाइड वेब साइट जैसा लगता है और समान टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए कुछ बैंक अपने ग्राह्कों को अपने इंटरानेट तक एक्सेस की सुविधा देते हैं ताकि वे अपने एकाउंट बैंलेंस और अन्य सेवाओं के बारे में जान सकें और उनका प्रिंट निकाल सकें।
15। फायरवॉल – इसका उपयोग बाहरी लोगों को नेटवर्क तक एक्सेस करने से रोकना है। पब्लिक नेटवर्क में कोई भी कनेक्शन लेकर इंटरनेट पर एक्सेस कर सकता है, लेकिन निजी इंटरानेट और एक्सट्रानेट में एक्सेस करने की इजाजत केवल वैध यूजरों जैसे – कर्मचारी, सप्लायर, वेंडर और क्स्टम आदि को ही होती है।
अवांछित यूजरों को एक्सेस से रोकने के लिए कंपनियां अपने इंटरानेट और एक्स्ट्रानेट में फायरवॉल का इस्तेमाल करती हैं।
16। वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल – वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल जिसे VoIP, IP टेलीफोनी, इंटरनेट टेलीफोनी, ब्रॉड्बैंड टेलीफोनी, ब्रॉड्बैंड फोन और वॉयस ओवर ब्रॉड्बैंड भी कहा जाता है।
IP नेटवर्क में वॉयस सिग्नल को ले जाने वाले प्रोटोकॉल आमतौर पर वॉयस ओवर IP अथवा VoIP कह्लाते हैं। यह ज्यादा नयी तकनीक है।
17। टेलीफोन सिस्टम – इस सिस्टम के माध्यम से लोग दूसरे नेटवर्क के लोगों से VoIP सिस्टम की मदद से बात कर सकते हैं
जबकि नेटवर्क से बाहरी व्यकितयों से बात करने के लिए परंपरागत टेलीफोन लाइनों का प्रयोग कर सकते हैं।
18। वायरलेस नेटवर्क – वायरलेस नेटवर्क उन केबल की जरुरत को खत्म करता है जो परंपरागत नेटवर्क में उपकरणों को एक-दूसरे से जोडती है।
वायरलेस नेटवर्क ऐसे मोबाइल उपकरणों की सुविधा देता है जो एक एरिया से दूसरे एरिया में जाने के बाद भी नेटवर्क से कनेक्ट बने रहें।
(A)। रेडियो सिग्नल – वायरलेस नेटवर्क उपकरणों के बीच सूच्नाओं को एक स्थान से
दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए रेडियो सिग्नल का इस्तेमाल करते हैं।
(B)। रेडियो ट्रांससीवर्स – रेडियो ट्रांससीवर्स नेटवर्क में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल होता है।
19। ब्लूटूथ – ब्लूटूथ एक रेडियो स्टैंडर्ड और कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल है।
ब्लूटूथ फोन, लैपटॉप, पर्सनल कम्प्यूटर, प्रिंटर, डिजिटल कैमरा और वीडियो गेम जैसे उपकरणों के बीच कनेक्शन स्थापित करने और सूचनाओं के आदान-प्रदान की राह खोलता है।
20। रिकोचेट – रिकोचेट एक नया नेटवर्क आर्किटेक्चर है जो हाई स्पीड वायरलेस नेटवर्क के लिए डिजाइन किया गया है।
रिकोचेट नेटवर्क आर्किटेक्चर इंफोर्मेशन को 128 Kpbs की स्पीड से ट्रांसफर कर सकता है। ये विशेष जगह जैसे – सिटी, सड्कों के किनारे वायरलेस रेडियो उपकरण रखकर तैयार होता है। इसके बाद वायरलेस उपकरण रिकोचेट मॉडम का इस्तेमाल कर रेडियो उपकरणों तक एक्सेस करता है ताकि वे नेटवर्क से जुड सकें।